Wednesday, November 11, 2009

अभिलाषा

तुमसे कुछ पूंछता हूँ, तुम्हारी रजा क्या है
चाहने की तुमको हमारी सजा क्या है
जनता हूँ तुम प्रतिबिम्ब हो पानी में
पर करूँ क्या होता है ये जवानी में


सावन हो तुम जवानी की सरिता में
पावन हो तुम प्रेम भरी कविता में
चाँद को निहारना चांदनी में खता नहीं
नामुमकिन है पहुँचाना, क्या तुम्हे पता नहीं


मेरी चाहतों का अहसास हो तुम
भरती हुई आहों का अभ्यास हो तुम
मैं चंदन , महक हो तुम
मैं क्रंदन , चहक हो तुम


आऊँगा पास ये आस नहीं
बनूँगा ख़ास ये प्रयास नहीं
इस प्रेम पर विजय की अभिलाषा नहीं
असफल हु पर निराशा नहीं

3 comments:

  1. nice poem.
    asfalta ke age dekhiye.
    koi aap ka intjar ker rahaa hai
    wo kaun hai???????...
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    Saflta.

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  2. nice piece....keep it up dost.......!!!!!

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  3. a beautiful one..
    looks like dodged in love...

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